हर बार कहती है माँ मेरी...
मत पढ़ा कर तू इतना बेटी मेरी...
मत बढ़ा तू रफ़्तार अपने कोमल हाथों का ...
तेरी नज़र कमजोर है ...
पता चलेगा तब , असर होगा जब तेरी आँखों को ...
सहेज तू अब अपने सुन्दर आँखों को ...
दे आराम अब अपने नयनन को...
उतार चश्मा देख पापा के दर्पण में अपने मुखड़े को...
तेरी बड़ी -२ आँखें ,घने भौहें को ,
तेरे फुले और खिले हुए चेहरे आँखों को...
खड़े देते मेरे मेरे रोंगटे ...
जब तू जाएगी ससुराल ...
continue ...
No comments:
Post a Comment